Saturday, August 2, 2025
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Malegaon Blast Case: 17 साल बाद साध्वी प्रज्ञा समेत सातों आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा – आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता

Malegaon Blast Case: 17 साल बाद साध्वी प्रज्ञा समेत सातों आरोपी बरी, कोर्ट ने कहा – आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता

महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके के मामले में 17 साल बाद बड़ा फैसला आया है। मुंबई स्थित एनआईए की विशेष अदालत ने इस बहुचर्चित केस में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष (प्रॉसिक्यूशन) यह साबित करने में असफल रहा कि बम किसने और कैसे प्लांट किया। साथ ही कोर्ट ने इस बात को भी दोहराया कि आतंकवाद का कोई रंग या धर्म नहीं होता।

इस धमाके में छह लोगों की दर्दनाक मौत हुई थी, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। उस वक्त देशभर में इस विस्फोट को लेकर राजनीति गर्मा गई थी और केस ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सांप्रदायिक तनाव को लेकर गंभीर बहस को जन्म दिया था। घटना के बाद शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस (एंटी टेररिज्म स्क्वॉड) ने की थी। लेकिन साल 2011 में यह केस राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया। पांच साल की लंबी छानबीन के बाद NIA ने 2016 में आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

NIA ने इस मामले में कुल सात लोगों को आरोपी बनाया था। इनमें सबसे चर्चित नाम भोपाल से बीजेपी की पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का था, जिन्हें इस मामले की मुख्य साजिशकर्ता बताया गया था। अन्य आरोपियों में कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, रमेश उपाध्याय, अजय राहिलकर, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी और सुधाकरधर द्विवेदी शामिल थे।

कोर्ट ने माना कि मालेगांव में बम धमाका होना सिद्ध हुआ है, लेकिन अभियोजन यह साबित नहीं कर सका कि जो बाइक घटनास्थल पर मिली, उसमें विस्फोटक प्लांट किया गया था या उस बाइक से आरोपी जुड़े थे। सबूतों की कमी के चलते कोर्ट ने सभी आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया।

साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने इस मामले में लगभग आठ साल जेल में बिताए। अप्रैल 2017 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें पांच लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी थी। अब 2025 में, करीब 17 वर्षों के बाद कोर्ट के इस फैसले ने उन्हें न्याय दिया है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि पीड़ित परिवारों को दो लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए।

इस फैसले के बाद देश में फिर से आतंकवाद, राजनीति और न्याय प्रक्रिया पर बहस छिड़ गई है। कोर्ट के इस बयान कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता” को कई राजनीतिक विश्लेषक देश की धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के अनुरूप बता रहे हैं, जबकि कुछ वर्ग फैसले को लेकर असंतोष भी जता रहे हैं।

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