VicePresident Election: उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुनेगी भाजपा, एनडीए ने जताया एकमत समर्थन
देश के दूसरे सबसे ऊंचे संवैधानिक पद—उपराष्ट्रपति—के लिए राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। आगामी चुनावों को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बड़ा कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा को उम्मीदवार तय करने की पूरी जिम्मेदारी सौंप दी है। यह फैसला रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में एनडीए सांसदों की एक अहम बैठक के दौरान लिया गया, जहां सभी सहयोगी दलों ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रधानमंत्री द्वारा घोषित नाम को बिना शर्त समर्थन दिया जाएगा।
12 अगस्त तक हो सकती है नाम की घोषणा
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने मीडिया को बताया कि एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को लेकर निर्णय लेने का अधिकार पूरी तरह से प्रधानमंत्री मोदी और जेपी नड्डा को दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक, एनडीए 12 अगस्त तक अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर सकता है। नामांकन की अंतिम तिथि 21 अगस्त है, और मतदान तथा मतगणना दोनों 9 सितंबर को ही होंगे। उसी दिन यह साफ हो जाएगा कि देश को नया उपराष्ट्रपति कौन मिलेगा।
क्या एनडीए की जीत तय है?
सवाल उठता है कि क्या एनडीए का उम्मीदवार चुनाव आसानी से जीत जाएगा? इसका उत्तर है—‘हां’, और वो भी बड़े अंतर से। उपराष्ट्रपति चुनाव में केवल सांसद ही मतदान करते हैं, जिनकी कुल संख्या लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर लगभग 788 है। जीत के लिए किसी भी उम्मीदवार को कम से कम 395 वोटों की आवश्यकता होती है।
एनडीए के पास पहले से ही यह संख्या पार कर चुकी ताकत मौजूद है। भाजपा के पास 240 लोकसभा और 99 राज्यसभा सांसद हैं। इसके अलावा जेडीयू, एलजेपी, शिवसेना (शिंदे गुट), अपना दल, एआईएडीएमके सहित कई अन्य सहयोगी दलों के सांसदों को मिलाकर एनडीए के पास 457 से अधिक सांसदों का समर्थन है। यह आंकड़ा जीत के लिए आवश्यक बहुमत से कहीं आगे है।
बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस और बीआरएस जैसे दलों की भूमिका
एनडीए को और मजबूत बनाने में उन क्षेत्रीय दलों की भूमिका भी अहम हो सकती है जो फिलहाल किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन अतीत में भाजपा या केंद्र सरकार को अहम मौकों पर समर्थन देते रहे हैं। इनमें बीजू जनता दल (बीजेडी), वाईएसआर कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) जैसे दल शामिल हैं। यदि ये दल भी भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करते हैं, तो विपक्ष के लिए मुकाबला बेहद कठिन हो जाएगा।
सियासी संदेश और रणनीतिक संकेत
इस बार उपराष्ट्रपति चुनाव को सिर्फ एक संवैधानिक औपचारिकता के रूप में नहीं देखा जा रहा, बल्कि इसे एनडीए की आंतरिक एकजुटता और विपक्ष के राजनीतिक सामंजस्य की परीक्षा के रूप में भी देखा जा रहा है। जब सभी सहयोगी दलों ने उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री पर छोड़ी और यह घोषित किया कि वे बिना किसी शर्त के समर्थन देंगे, तो यह संकेत गया कि गठबंधन पूरी तरह एकमत और मजबूत है।
भाजपा उम्मीदवार के नाम को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में कई संभावित नामों की चर्चा जोरों पर है। हालांकि अंतिम निर्णय का अधिकार प्रधानमंत्री मोदी के पास है, जिससे यह तय माना जा रहा है कि नाम राजनीतिक तौर पर संतुलित और रणनीतिक होगा।
विपक्ष की रणनीति—प्रतिक्रिया या चुनौती?
विपक्ष भी इस चुनाव को हल्के में नहीं ले रहा है। भले ही संख्या बल उनके पक्ष में नहीं है, लेकिन एक साझा उम्मीदवार उतार कर वे सरकार को राजनीतिक चुनौती देना चाहते हैं। विपक्षी दलों की बैठकों का दौर जारी है और कोशिश की जा रही है कि ऐसा चेहरा सामने आए जो व्यापक जन समर्थन और राजनीतिक प्रभाव रखता हो।
हालांकि, बीते राष्ट्रपति चुनाव की तरह ही इस बार भी एनडीए की भारी संख्या के आगे विपक्ष कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। फिर भी चुनावी प्रक्रिया को जीवंत बनाए रखने के लिए विपक्ष एकजुटता का संकेत देना चाहता है।
सभी निगाहें 12 अगस्त पर टिकीं
राजनीतिक समीकरणों और गठबंधनों के बीच अब देश की निगाहें 12 अगस्त पर टिकी हैं। यही वह दिन हो सकता है जब एनडीए अपने उम्मीदवार का नाम सार्वजनिक करेगा। इसके बाद उपराष्ट्रपति चुनाव का तापमान और भी बढ़ जाएगा, क्योंकि न केवल औपचारिक मतदान होगा, बल्कि पूरे देश की राजनीति में इसकी गूंज सुनाई देगी।