Khandwa Demolition: खंडवा में 137 मकानों पर बुलडोजर: अतिक्रमण विरोधी अभियान बना विवाद का केंद्र
मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में जलस्रोत की रक्षा के नाम पर अब तक की सबसे बड़ी अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई को अंजाम दिया गया। मंगलवार सुबह 6 बजे शुरू हुए इस अभियान के तहत शक्कर तालाब क्षेत्र में अवैध रूप से बने 137 मकानों को निशाना बनाया गया, जिनमें से 98 से अधिक घरों को ढहा दिया गया है। यह कार्रवाई जिला प्रशासन, नगर निगम और पुलिस बल की संयुक्त योजना का हिस्सा रही और इसे खंडवा के इतिहास में सबसे बड़ी और सुनियोजित अतिक्रमण हटाने की मुहिम माना जा रहा है।
तालाब की जमीन पर अतिक्रमण
शक्कर तालाब खंडवा का प्रमुख जलस्रोत है, जिसके चारों ओर वर्षों से अस्थायी बस्तियां बनती जा रही थीं। प्रशासन के अनुसार ये बस्तियां जल संचयन में बाधा बन रही थीं और शहर के जल संकट को बढ़ा रही थीं। नगर निगम के उप आयुक्त एस.आर. सिटोले के अनुसार, यह जमीन सरकारी है और 137 अतिक्रमणों की पहचान की गई थी। जिनमें से 27 पर हाईकोर्ट की रोक है, जबकि 12 मकान हाउसिंग बोर्ड की संपत्ति हैं।
कानूनी प्रक्रिया का पालन
प्रशासन का दावा है कि कार्रवाई से पहले सभी प्रभावित परिवारों को नोटिस जारी किया गया, और अधिकांश मकानों को पहले ही खाली करा लिया गया था। किसी अप्रिय घटना से बचने के लिए भारी पुलिस बल की तैनाती की गई थी। साथ ही, राजस्व विभाग और नगर निगम के अधिकारी मौके पर लगातार निगरानी बनाए रहे।
प्रशासन का पक्ष: जलस्रोत संरक्षण और शहरी विकास
प्रशासन इसे शहरी जलस्रोतों के पुनरुद्धार और पर्यावरण संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बता रहा है। अधिकारियों के अनुसार, शक्कर तालाब पर अतिक्रमण से उसका प्राकृतिक बहाव और जल संचयन प्रभावित हो रहा था, जिससे शहर को जल संकट का सामना करना पड़ रहा था।
स्थानीय विरोध: पुनर्वास का सवाल
लेकिन इस अभियान पर स्थानीय लोगों का विरोध भी सामने आया है। उनका आरोप है कि उन्हें बिना वैकल्पिक आवास दिए उजाड़ा जा रहा है। कई परिवारों ने दावा किया कि वे वर्षों से वहीं रह रहे थे और उनके पास बिजली-पानी जैसे सरकारी कनेक्शन भी हैं, जो उनकी वैधता को दर्शाते हैं।
राजनीतिक बयानबाज़ी और सवाल
इस मुद्दे पर राजनीतिक दल भी सक्रिय हो गए हैं। विपक्षी नेताओं ने प्रशासन की कार्रवाई को गरीब विरोधी बताया और मांग की है कि प्रभावित परिवारों को तुरंत मुआवजा और वैकल्पिक घर दिए जाएं। उनका कहना है कि विकास की आड़ में कमजोर वर्ग को निशाना बनाया जा रहा है, जो असंवेदनशील रवैये को दर्शाता है।
निष्कर्ष: विकास बनाम संवेदनशीलता
खंडवा में चला यह बुलडोजर एक तरफ जहां प्रशासनिक सख्ती और जलस्रोत की रक्षा की मिसाल बन सकता है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी खड़े करता है—क्या विकास की दौड़ में मानवीय पहलुओं की अनदेखी की जा रही है? पुनर्वास के बिना यह कार्रवाई केवल विवाद और असंतोष को जन्म दे सकती है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि प्रशासन विस्थापितों के लिए क्या नीति अपनाता है, या फिर यह अभियान एक और संवेदनहीन उदाहरण बनकर रह जाएगा।